Monday, April 05, 2010

"जैसा करे बड़ा, छोटा भी वोही करे पीछे खड़ा"

हलाकि मैं घर में सबसे छोटा था, और सबकी कॉपी केट था, पर माँ ने मुझसे पहले चार-चार बच्चे बड़े किये थे. उसे पता था की कैसे बच्चों को सही रस्ता दिखाना है. हमारे पास एक रोडेशियन कुत्ता था, नाम था गिनी. क्या कहा, आपने कभी कोई रोडेशियन कुता नहीं देखा? भाई पता नहीं, हमारे यहाँ तो था. गिनी की बाप था रोड-साइड कुत्ता, और माँ अल्सिअशन, तो गिनी हो गई ना रोडेशियन. उसमे अपने बाप और माँ दौने के गुन आये थे. पटाखों की आवाज़ से उसकी वाट लग जाती थी, पर खाने के मामले में बिलकुल अपने बाप पर गई थी. पर आप पूछ रहें है यह किस्सा मुहावरों की जानिब है या गिनी के? तो मैं आपको बता दूँ की यह किस्सा गिनी के साथ या यह कहूं की गिनी की याद के साथ जुड़ा है तो गलत नहीं होगा.

हुआ यह की जब मैंने बहुत जिद की कि मुझे भी कोई छोटा भाई या बहन चाहिए, तो माँ क्या करती? वह तो 'पांच हो गये, बहुत हो गए' वाले मूड में थी. और इधर मैं जिद पर अड़ा हुआ. तो पापा-मम्मी पता नहीं कहाँ से गिनी को ले आये और कहने लगे कि यह ही है अब तुम्हारे छोटे भाई-बहन की तरह. पहले तो मुझे लगा कि 'ठगे गए यार,' पर फिर धीरे-धीरे गिनी से दोस्ती हो गई.

अब तो यह की गिनी भूखी है तो मैं नहीं खाऊंगा, गिनी सोयगी तो मैं सोऊंगा, गिनी यह तो वह, नहीं तो बस भैं-भैं करके रोना. आफत आ गई सबकी. तो माँ ने एकदिन पूछा, "पता है गिनी
तुम्हारी बात क्यों नहीं मानती?"

मैं पूछा, "क्यों?"

"क्योंकि वह देखती रहती
है ना कि तुम क्या कर रहे हो. वह तुमसे छोटी है ना, इसलिए वही करेगी जो तुम करोगे. जैसा करे बड़ा, छोटा भी वोही करे पीछे खड़ा."

मुझे सुन कर अच्छा लगा कि कोई मुझे भी फोलो करता है. "अच्छा, माँ. सचमुच?"

"और क्या, तुम आँख बंद करके लेट जाओ, देखो फिर गिनी क्या करती है."

मैं आंख भीच कर, बनावटी नींद ओढ़ कर लेट गया. गिनी ने आ कर सूंघा, "ऊँ-ऊँ" किया. फिर जब मैं नहीं उठा तो बोर हो कर वहीं नीचे ज़मीन पर पसर गई. मम्मी ने फुसफुसा कर कहा, "देखा! चुप हो कर लेट गई गिनी. अब सो जाओ, वह भी सो जाएगी. थक गई है, "हें-हें" कर रही है.

खैर ऑंखें मीचे मैं भी सो गया और
थोड़ी देर, मुंह खोल कर "हें-हें" करने के बाद गिनी भी सो गई.

फिर तो जो गिनी को सिखाना होता, वह पहले मुझसे कहा जाता कि करो, और गिनी फोलो करती. थोड़े समय में मैं बैठ कर खाऊँ
तो गिनी बैठ कर खाए, मैं अच्छा बच्चा बन कर बैठूं तो गिनी भी ढंग से बैठे, वगेहरा, वगेहरा. अब सोचता हूँ तो लगता है कि गिनी के बहाने माँ मुझे सिखा रही थीं. पर क्योंकि यह बात तो मेरी समझ में पूरी आ गई थी, "जैसा करे बड़ा, छोटा भी वोही करे पीछे खड़ा."

बहुत सालों बाद जब गिनी हमारे पास नहीं रही, हम सभी गिनी को याद कर रहे थे. बातों-बातों में मैंने माँ से कहा, "भला हो बेचारी गिनी का, उसके बहाने तुमने मुझे जो भी सिखाना था सिखा दिया," तो माँ हँसने लगी, "हम अपने आचरण से ही दूसरों को ज्यादा अच्छा सिखाते हैं."

इतने दिनों के बाद, आज मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि केवल जो बात मैंने दूसरों के आचरण से सीखीं वह ही मेरा व्यवहार बन गई. जीवन में उपदेश और उपदेशक तो अधिक काम नहीं आये. सच है, "सिर्फ कहने से गधा वहीं अड़ा...जैसा करे बड़ा, छोटा भी वोही करे पीछे खड़ा."

4 comments:

Unknown said...

Bahut sundar seekh.

Unknown said...

Written in good humor. I liked the breed of the dog in your story.

Kamaksha Mathur said...

Beautiful....Liked it!

Randhir Singh Suman said...

nice