Wednesday, April 28, 2010

कांजीवरम इडली
[यह किस्सा मैंने पहले फेसबुक पर लिखा था. पर बहुत से लोगों ने इसे नहीं पढ़ा था, तो इस को यहाँ लगा रहा हूँ, उन सब से क्षमा याचना के साथ, जिन्होंने इसे पहले पढ़ा है.]

मेरे एक मित्र हैं जिन्हें हम मगर के नाम से बुलाते हैं. नहीं, उनका असली नाम मगर नहीं है, और मगरमच्छ आदि से उनका कोई दूर दूर तक सम्बन्ध भी नहीं है. बात यह है कि उनके पास एक अनोखी प्रतिभा है. आप कुछ भी, अच्छी से अच्छी बात बताएं, सुन कर वह ग़मगीन हो जायेंगे. कहेंगे कि "हाँ, यह तो ठीक है, मगर उसका क्या?" मज़े कि बात यह है कि "मगर भाई" हर अच्छी खबर का कोई इतना खतरनाक पहलू निकाल लायेंगे कि कुछ पल पहले आपके चहरे पर जो चमक थी वह उड़ जायेगी और रह जायेगी एक बदहवासी. आप सोचते रह जायेंगे कि मगर यह तो हमने सोचा ही नहीं था. फिर एक बार आपके काल्पनिक सुन्दर सफ़ेद बगुले को मगर खा जायेगा. मैंने मगर भाई से इतना कहा कि भैया! मैं ठहरा एक कवि, मुझे कुछ देर तो अपनी काल्पनिक दुनिया में खुश रहने दिया करो, कुछ देर तो अपने मगर को बाँध कर रखा करो. जब मेरी कल्पना कि उडान थोडी पुरानी हो जाये, तो धीरे से मगर को बाहर निकला करो. मगर नहीं, मगर भाई का मगर तो खुला घूमता है.

कल मेरी कांजीवरम इडली खाने की तीव्र इच्छा हुई. आप भी कहेंगे कि क्या यार, तुम्हारी इच्छा भी क्या स्पेशल है, हुई भी तो कांजीवरम इडली खाने की. क्या करें, दिल ही तो है, उस पर यह कमबख्त TV वाले! एक प्रोग्राम दिखाते हैं "यह है इंडिया." सुन्दर सी नीलगिरी वादियों में बसा एक छोटा सा गाँव, गाँव में एक छोटी-सी दूकान. देखिये यहाँ पर इस हरी-भरी वादी में यह कैसे सुन्दर बादल छाये हुए हैं. क्या आप महसूस कर सकते है खुशबु की नाचती हुई लहरें. जी हाँ! नाचती हैं खुशबु की लहरे यहाँ, सुबह-सुबह, जब इस दूकान पर कांजीवरम इडली बनती है. लोग दूर-दूर से आते हैं, बस कांजीवरम इडली खाने और फिल्टर काफ़ी पीने. कैमरे का एंगिल घूमता है, दिखती है कारों की लम्बी कतार. लोग यहाँ-वहां बैठ कर कांजीवरम इडली खा रहे है. लुक-आउट पॉइंट से सुन्दर मनभावन दृश्य देख रहें है और प्लास्टिक के कप में गर्मागर्म काफी पी रहे हैं. एक नॉर्थ इंडियन कपिल इडली में छिपे मसाले से उत्तेजित हो कर सी-सी कर रहा है. दूर एक माता जी बैठी ऊँगली से नारियल चटनी चाट रही हैं. एंकर लेडी फ्रेम में आती है. वह उस नॉर्थ इंडियन कपिल से मुखातिब है. आदमी से पूछ रही है, "भाई-साहब! आपने कितनी इडली खायी हैं?" भाई-साहब बस मुस्कुरा रहें है, कुछ बोल नहीं पा रहे हैं. पर उसके चहरे का नूर बता रहा है कि उसने छक कर कांजीवरम इडली खाई हैं. उनकी पत्नी बीच में आ कर कहती है, "हाय, इतनी खाई, (कूदते हुए), इतनी खाई, कि बस, पेट जो है न वह कश्मीर से कन्याकुमारी तक ठसाठस भर गया." यहाँ कैलिफोर्निया में बेठे, यह प्रोग्राम देखते मेरी आँखों के सामने ऐसा खाका खिच गया कि मुझे लगा कि अगर मुझे अभी के अभी कांजीवरम इडली नहीं मिली तो मेरा पेट कश्मीर से कन्याकुमारी तक हड़ताल कर देगा. कांजीवरम इडली की खुशबू की याद, फिल्टर काफ़ी की सुहास और नीलगिरी जाने की आस सब एक फितना बन कर मेरे ज़हन से चिपट गए और मैं थूक निगलता, लार टपकता अपनी कल्पना की दुनिया में खो गया. काश, अगर मैं इंडिया में होता तो सब कुछ छोड़ कर बंगलोर चला जाता. वहां से नीलगिरी की पहाडियां, वादियां, सुन्दर दृश्य. अगर मेरे पास समय होता तो मैं तो इसी गाँव में बस जाता. अगर कांजीवरम इडली और अनलिमिटेड फिल्टर काफ़ी मिलती रहे तो और क्या चाहियें? अगर, अगर अगर...

मगर मैं "अगर" पर था, उधर से "मगर" आ रहा था. देख के कहने लगा, "तुम्हारे चहरे को देख के लग रहा है की तुम्हे कोई कविता या कहानी लग रही है. मैं उसके जन्म होने के बाद तुमसे मिलता हूँ." मैंने कहा, "नहीं भाई! मुझे कोई कविता या कहानी नहीं आई है, बस कांजीवरम इडली खाने की तीव्र इच्छा हो रही है." मगर भाई कहने लगे, "अच्छा, कांजीवरम इडली, वह जो मसालेदार होती हैं." मैंने कहा, "हाँ, और नारियल चटनी साथ हो तो बस, याद है कैसा मुंह खुल जाता है कि बस खाते जाओ, खाते जाओ."

मगर भाई ग़मगीन हो गए, कहने लगे, "स्वादिष्ट तो होती ही है, मगर पता है उसमे कितनी केलोरी होती हैं?" मेरी कल्पना की उडान में आया व्यवधान. यह तो मैंने सोचा ही नहीं. मैंने कहा, "नहीं. कितनी?" कहने लगे, "एक इडली में करीब ७५ केलोरी होती हैं. एक दो खाओ तो ठीक, मगर खाते जाओ, खाते जाओ तो बहुत हो जाती हैं." मैंने कहा, "यार ठीक है. जिम में आधा घंटा और लगा देंगे." मगर भाई कहने लगे, "हाँ जिम जाना तो अच्छा है, मगर आधे घंटें में कितनी सी केलोरी बर्न होंगी? ज्यादे-से-ज्यादे ४०० केलोरी? अगर तुम सोचो, नारियल चटनी के साथ ६ इडली खा लीं तो ७५ छकका ४५०, और नारयल चटनी के पकडो ३५० तो ७५० तो यह ही हो गए. अनलिमिटेड काफी के अलग." मैं अभी सकते में आया ही था कि उसने एकदम से फिर पूछा, "चीनी डालोगे?" मैं चौंका, "किसमे?" कहने लगे, "कोफी में." मैंने कहा, "ज़रूर डालूँगा. मसाले वाली इडली खाने के बाद मीठी गरम फिल्टर काफ़ी का मज़ा ही कुछ और है." मगर भाई कहने लगे, "तुम पिओगे तो दो-तीन काफी तो पी ही जाओगे. तो समझो १५० केलोरी हो गए उसके. कुल हो गई ९०० केलरी. जिम जाना तो ठीक पर आधे घंटे ज्यादे जाने से क्या फर्क पड़ेगा?" मैंने मगर भाई को रोक कर कहा, "यार! कहाँ रखते तो यह सारा डाटा?" गर्व से सीना फुला कर मगर भाई बोले, "अरे सारा का सारा इन्टरनेट भरा हुआ है, मगर तुम देखते ही नहीं." मेरी कल्पना की उडान अब तक नीचे आ कर कई बार ज़मीन से टकरा चुकी थी. झुंझलाहट में मुंह का सारा जायका भी ख़राब हो गया था. अब तक जो यादों की खुशबू शराब का नशा लग रही थी वह हेंग-ओवर की तरह चुभने लगी थी. क्रिकेट की हारती हुई टीम के कैप्टिन की तरह मैंने कहा, "अगर-मगर कुछ नहीं, अगली बार मैं इंडिया जाऊँगा तो कांजीवरम इडली छक कर खा के आऊँगा." मगर भाई कहने लगे, "वह तो ठीक है, मगर तुम तो लखनऊ जाते हो, कांजीवरम इडली कहाँ से खाओगे." मेरी आँखों में अब तक आंसू आ गए थे और आवाज़ भर्रा गई थी. पहले ओवर की पहली गेंद पर आउट हुए ओपनिंग बैट्समैन की तरह से मैंने अपने हाथ झटके, आँखे रोल की, जोर से ठंडी सांस ली और एक मोटी से गाली देते हुए बोला, "मगर भाई, पिच गीला था, फिर भी मैं खेला. अब और नहीं, कोई अगर-मगर नहीं, मैं कांजीवरम इडली खाऊँगा, खाऊँगा और देखता हूँ कौन मुझे रोकता है. मैं लखनऊ नहीं, बंगलोर जाऊँगा. हफ्तों तक बस कांजीवरम इडली खाऊँगा. भाड़ में गई केलोरी और उसकी अम्मा."

मगर भाई कहने लगे, "यार आप आदमी अच्छे हो, मगर बड़े इमोशनल हो." मैंने कहा, "हाँ, अभी तुम यहाँ से चले जाओ, नहीं तो तुम्हे कांजीवरम इडली उठा-उठा के मारूंगा, मगर भाई!" मगर भाई बोले, "यह तो ठीक है, मगर कहाँ है कांजीवरम इडली?" पहली बार मुझे लगा कि यह साला मगर कह तो सही रहा है, कहाँ है कांजीवरम इडली?

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